हल्द्वानी। आंध्र प्रदेश से एक अद्भुत गाय-बैल की जोड़ी हल्द्वानी पहुंची है (miniature cow in haldwani), जो अपने असाधारण छोटे आकार के कारण स्थानीय लोगों और पशु प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन गई है। यह जोड़ी पुंगनूर नस्ल की है, जो दुनिया की सबसे छोटी गाय के रूप में विख्यात है। इस 18 इंच ऊंची जोड़ी को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है।
हल्द्वानी के कालाढूंगी रोड स्थित आदर्श नगर के निवासी और ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष घनश्याम रस्तोगी ने आंध्र प्रदेश के काकीनाडा से यह माइक्रो मिनिएचर गाय-बैल की जोड़ी मंगवाई है।
डॉ. कृष्णम राजू की नाड़ीपति गोशाला से यह जोड़ी लेकर आने के बाद घनश्याम रस्तोगी ने इन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर लगभग दो हजार किलोमीटर का सफर तय किया। जब यह जोड़ी हल्द्वानी पहुंची, तो देखने वालों का तांता लग गया। रस्तोगी परिवार ने इनका नाम लक्ष्मी और विष्णु रखा है।
इस विशेष जोड़े की ऊंचाई मात्र 18 इंच (लगभग 45 सेंटीमीटर) है, जो इन्हें अत्यंत दुर्लभ और आकर्षक बनाता है। तुलना के लिए, एक सामान्य गाय की ऊंचाई इसकी लगभग तीन गुना होती है। रस्तोगी परिवार ने इन गाय-बैल का नाम हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर लक्ष्मी और विष्णु रखा है।
पुंगनूर गाय की यह नस्ल अपनी कम ऊर्जा आवश्यकताओं और सीमित स्थान में पाले जा सकने की क्षमता के लिए जानी जाती है। रस्तोगी के अनुसार, इस जोड़े के लिए प्रतिदिन सिर्फ 1.5 किलोग्राम चारा पर्याप्त है, जो एक सामान्य गाय की तुलना में बहुत कम है। इनका मुख्य आहार तरबूज, खरबूजे जैसे फल और विभिन्न हरी सब्जियां हैं।
उत्तराखंड की गर्म जलवायु को ध्यान में रखते हुए, रस्तोगी परिवार ने इस जोड़े के लिए विशेष व्यवस्था की है। उन्होंने गायों के रहने के स्थान पर एक कूलर लगाया है ताकि वे गर्मी से बच सकें और नए वातावरण में सहज महसूस कर सकें।
यह पहली बार है जब उत्तराखंड में इस प्रकार की माइक्रो मिनिएचर गाय-बैल की जोड़ी लाई गई है। इसके आने से क्षेत्र में लोगों में काफी उत्सुकता है और कई लोग इन्हें देखने के लिए रस्तोगी परिवार के घर पहुंच रहे हैं। स्थानीय निवासी इस अनोखी जोड़ी को देखने और उनके बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं।
पुंगनूर गाय-बैल की विशेषताएं : पुंगनूर गाय-बैल की जोड़ी की कई विशेषताएं हैं जो इन्हें अन्य गायों से अलग बनाती हैं। इन गायों की ऊंचाई केवल 18 इंच होती है, जिससे इन्हें घर के अंदर भी आसानी से रखा जा सकता है। इन्हें पालने में बहुत कम खर्च आता है, क्योंकि इनके लिए मात्र 1.5 किलो चारा पर्याप्त होता है। इसके अलावा, इन्हें हरी सब्जियां और फल भी बहुत पसंद हैं।
पुंगनूर गाय की इतिहास और विकास: पुंगनूर गाय की नस्ल का इतिहास 112 साल पुराना है। यह नस्ल मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में पाई जाती है। डॉ. कृष्णम राजू ने 14 साल की मेहनत के बाद इस नस्ल में सुधार किया है और इसे मिनिएचर रूप में विकसित किया है। उन्होंने 1600 गायों पर रिसर्च करके यह सुनिश्चित किया कि ये गायें छोटे आकार में भी स्वस्थ और उत्पादक रहें। उनके प्रयासों से पुंगनूर गाय अब विश्व भर में प्रसिद्ध हो चुकी है।
इस पहल से न केवल एक दुर्लभ पशु नस्ल का संरक्षण हो रहा है, बल्कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए भी गौ पालन का एक व्यावहारिक विकल्प सामने आया है। रस्तोगी परिवार की यह पहल उत्तराखंड में पशुपालन और गौ संरक्षण के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ती प्रतीत होती है, जो भविष्य में इस क्षेत्र में और अधिक रुचि और शोध को प्रोत्साहित कर सकती है।