“हो जैता एक दिन त आलो ऊ दिन यौ दुनी में” (वह दिन एक दिन आएगा इस दुनिया में) – गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’
नैनीताल, 22 अगस्त 2024: नैनीताल में गुरुवार को प्रसिद्ध जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की स्मृति में 14वां गिर्दा स्मृति समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में गिर्दा की काव्य विरासत और सामाजिक योगदान को भावपूर्ण तरीके से याद किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत शाम 4:30 बजे क्रांति चौक तल्लीताल से एक सांस्कृतिक जुलूस के साथ हुई, जिसमें गिर्दा की प्रसिद्ध पंक्ति “हो जैता एक दिन त आलो ऊ दिन यौ दुनी में” सहित उनके और अन्य कवियों के जनगीत गाए गए। भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय के छात्रों ने छोलिया नृत्य प्रस्तुत कर जुलूस की शोभा बढ़ाई।
जुलूस मल्लीताल स्थित सीआरएसटी इंटर कॉलेज में समाप्त हुआ, जहां समसामयिक विषयों पर संबोधन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस दौरान युगमंच नैनीताल द्वारा ‘आसां नहीं होता है गिर्दा होना’ का मंचन, ताल साधना अकादमी द्वारा गिर्दा के जनगीतों की प्रस्तुति, और गिर्दा स्मृति मंच द्वारा नाटक ‘राजा के सींग’ का मंचन किया गया। यह नाटक विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इसका प्रथम निर्देशन 1990 में स्वयं गिर्दा द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम में गिर्दा की पत्नी हेमलता तिवारी, गिर्दा स्मृति मंच के सदस्य, और पूर्व विधायक डॉ. नारायण सिंह जंतवाल सहित कई प्रमुख व्यक्तित्व शामिल हुए। इस अवसर पर जहूर आलम, एचएस राणा, डीके शर्मा, मिथिलेश पांडे, राजेश आर्या, सैनिक स्कूल के प्रधानाचार्य बिशन सिंह मेहता, अनिल कुमार, कविता उपाध्याय, शेखर पाठक, पवन, आकाश नेगी, गौरव जोशी, हिमानी, पंकज भट्ट, भारती जोशी, दीपक सहदेव, दिनेश उपाध्याय, जसराम, प्रकाश पांडे, अभय बडोला, रोहित वर्मा, हिमांशु पांडे, अजय कुमार, अदिति खुराना, रिचा, और मोनिका जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व भी मौजूद रहे। समारोह से पहले समाज में हो रहे बलात्कार और हत्याओं के विरोध में मौन भी रखा गया, जो गिर्दा के सामाजिक चेतना के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
इस वार्षिक समारोह ने एक बार फिर जनकवि गिर्दा की स्मृति को ताजा किया और उनके साहित्यिक योगदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया। गिर्दा की आशावादी पंक्ति “हो जैता एक दिन त आलो ऊ दिन यौ दुनी में” ने कार्यक्रम के दौरान लोगों को प्रेरित किया और उनके विचारों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। यह आयोजन न केवल नैनीताल की सांस्कृतिक विरासत को संजोने का माध्यम बना, बल्कि स्थानीय कला और साहित्य को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण मंच भी साबित हुआ। गिर्दा की कविताओं और उनके सामाजिक संदेशों को याद करते हुए, यह समारोह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।