रक्षाबंधन और यजुर्वेदी उपाकर्म की तैयारियां
इस वर्ष 19 अगस्त 2024 को रक्षाबंधन और यजुर्वेदी उपाकर्म मनाया जाएगा। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, इस दिन सुबह से दोपहर 1:33 बजे तक भद्रा काल रहेगा। विशेषज्ञों का सुझाव है कि राखी और जनेऊ दोपहर 1:33 के बाद ही धारण किया जाए।
भद्रा काल का महत्व
प्राचीन ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार, श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन) और फाल्गुनी पूर्णिमा (होलिका दहन) पर भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। मान्यता है कि श्रावणी पूर्णिमा पर भद्रा में कर्म करने से राजा को हानि होती है, जबकि फाल्गुनी पूर्णिमा पर ऐसा करने से गांव में आग लगने का खतरा रहता है।
श्रावणी उपाकर्म का वैदिक महत्व
श्रावणी उपाकर्म वैदिक शिक्षा और संस्कारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें दस विधि स्नान, पितृ तर्पण, ऋषि तर्पण, और यज्ञ शामिल हैं। यह अनुष्ठान आत्म-कल्याण और पूर्वजों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
क्षेत्रीय विविधताएं
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में, कुछ सामवेदीय ब्राह्मण परिवार हरतालिका तीज (भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया) को सामवेदीय उपाकर्म मनाते हैं। उत्तराखंड में रक्षाबंधन के दिन ‘जन्योपुन्यू’ भी मनाई जाती है, जिसमें नई जनेऊ धारण की जाती है।
रक्षा सूत्र का धार्मिक महत्व
रक्षा सूत्र बांधने से तीनों देव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और तीनों देवियां (सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती) प्रसन्न होती हैं। इस अवसर पर ऋषि तर्पण भी किया जाता है।
रक्षाबंधन और श्रावणी उपाकर्म भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं। ये त्योहार न केवल पारिवारिक बंधन को मजबूत करते हैं, बल्कि हमारी प्राचीन परंपराओं और ज्ञान को भी संरक्षित रखते हैं। भद्रा काल जैसी ज्योतिषीय मान्यताओं का पालन करते हुए, हम अपने उत्सवों को और अधिक सार्थक बना सकते हैं।
आलेख आचार्य पंडित प्रकाश जोशी, गेठिया नैनीताल।