उत्तराखंड में त्योहारों का मौसम
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बिरुड पंचमी और सातूं-आठूं व्रत का उत्साह बढ़ता जा रहा है। ये त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक भी हैं।
महत्वपूर्ण तिथियां:
- 24 अगस्त 2024 (शनिवार): बिरुड पंचमी
- 25 अगस्त 2024 (रविवार): अमुक्ता भरण सप्तमी (सातूं व्रत)
- 26 अगस्त 2024 (सोमवार): आठूं पर्व (दूर्वा अष्टमी) और श्री कृष्ण जन्माष्टमी
बिरुड पंचमी: अनाज और आस्था का मिलन
बिरुड पंचमी पर पांच प्रकार के अनाज (भट्ट, उड़द, चना, गेहूं आदि) को भिगोकर विशेष व्यंजन तैयार किया जाता है। इस दिन गांव-गांव में गमरा-महेश की स्थापना और पूजा होती है।
सातूं-आठूं व्रत: संतान प्राप्ति और सौभाग्य का प्रतीक
सातूं व्रत पर महिलाएं गमरा देवी की मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं। आठूं पर्व पर महेश्वर (मैसर या मैसु) की मूर्ति बनाई जाती है। ये व्रत संतान प्राप्ति और सौभाग्य के लिए किए जाते हैं।
लोक संस्कृति का उत्सव
इन त्योहारों के दौरान महिलाएं सामूहिक रूप से लोकनृत्य झोड़ा और चांचरी का प्रदर्शन करती हैं। गांवों में उत्सव का माहौल छा जाता है, जो स्थानीय संस्कृति की समृद्धि को दर्शाता है।
पौराणिक कथा का महत्व
इन व्रतों से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं, जो इनके धार्मिक और सामाजिक महत्व को रेखांकित करती हैं। एक कथा में बताया गया है कि इस व्रत को करने से कैसे एक रानी को संतान प्राप्ति का वरदान मिला।
समापन
बिरुड पंचमी और सातूं-आठूं व्रत उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। ये त्योहार न केवल धार्मिक आस्था को बल देते हैं, बल्कि समुदाय के बीच एकता और परंपराओं के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आने वाले दिनों में, कुमाऊं क्षेत्र इन रंगारंग उत्सवों से गुलजार होगा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही संस्कृति की निरंतरता को दर्शाता है।
*लेखक आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल*