भिटौली (Bhitoli) : उत्तराखंड की एक बेहद खास परंपरा, अपने परिवारजनों के इंतज़ार की

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देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति, त्योहार और रीति रिवाजों को मनाने का अपना अलग अंदाज है। उत्तराखंड अपनी रंगीली लोक परम्पराओं और त्यौहारों के लिये सदियों से लोकप्रिय हैं। यहाँ प्रचलित कई ऐसे त्यौहार हैं जो केवल उत्तराखण्ड में ही मनाये जाते है। वही इसे बचाए रखने का दायित्व उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र और यहाँ पर रहने वाले पहाड़ी लोगों ने उठाया है, इन्होने आज भी अपनी परंपरा और रीति- रिवाजों को सजो के रखा है। जिनमें से एक मुख्य लोकपर्व है “भिटोली “(bhitoli)। भिटोली वास्तव में कोई त्योहार नहीं है, बल्कि यह दशकों से चली आ रही एक सामाजिक परंपरा है, जिसे आज एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है और यह परंपरा आज भी जीवित है। यही कारण है कि उत्तराखंड में चैत का पूरा महीना भिटोली के महीने के तौर पर मनाया जाता है।

“न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मिकें मैत की।”

चैत्र के महीने में मायका पक्ष से भाई अपनी शादीशुदा बहन के लिए भिटौली लेकर उसके ससुराल जाता है। भिटोली में लड़की को पकवान, वस्त्र और भेंट के तौर पर कई सामान दिया जाता है।

कुमाऊनी शब्द है “भिटौली” जिसका अर्थ है भेंट यानी मुलाकात सदियों पहले पहाड़ में यह प्रथा जब शुरु हुई, तब आने-जाने के सुगम साधन उपलब्ध नहीं थे, दूरदराज पहाड़ों में विवाहित महिला को सालों तक अपने मायके जाने का मौका नहीं मिल पाता था। इसलिये अपनी शादीशुदा लड़की से कम से कम सालभर में एक बार मिलने और उसको भेंट देने के प्रयोजन से ही यह परम्परा शुरू हुई।

ऐसे में चैत्र में मनाई जाने वाली भिटौली के जरिए भाई अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे भेंट करता था। उपहार स्वरूप पकवान लेकर उसके ससुराल पहुंचता था। भाई बहन के इस अटूट प्रेम, मिलन को ही भिटौली कहा जाता है। सदियों पुरानी यह परंपरा निभाई जाती है। यह रिवाज सिर्फ उत्तराखंड के लोगों के द्वारा मनाया जाता है। विवाहित बहनों को चैत का महीना आते ही अपने मायके से आने वाली ‘भिटोली’ की सौगात का इंतजार रहता है। इसे चैत्र के पहले दिन फूलदेई से पूरे माहभर तक मनाया जाता है।

समय के साथ बदल रही है भिटोली परम्परा
आज समय बदलने के साथ-साथ इस परंपरा में भी काफी कुछ बदलाव आ चुका है। आज पहाड़ों की परंपरा और संस्कृति को बया करने वाली लोक कथाओं, लोकगीतों का अस्तित्व खत्म हो रहा है। आधुनिक युग में अब ये औपचारिकता मात्र रह गयी है। हलवा, पुवे, पूरी, खीर, खजूरे जैसे व्यंजन बनने कम हो गये हैं। अब फ़ोन पर बात करके और गूगल पे, फ़ोन पे से शादीशुदा बहन-बेटियों को रुपये भेजकर औपचारिकता पूरी हो रही है।

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