Dehradun 68 crore for air pollution control: उत्तराखंड (Uttarakhand) में देश का सबसे बड़ा एयर स्कैम हुआ, जिसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। जिस हवा में आप सांस ले रहे हैं उस हवा को साफ करने के लिए आए 68 करोड़ रुपए निगल लिए गए। चलिए इसको नंबर्स और डेटा से समझते है। जो इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे है उसे पढ़कर आपके पांव तले जमीन खिसक जाएगी।
उत्तराखंड बनेगा अगला दिल्ली!, प्रदेश में 68 करोड़ का बड़ा घोटाला 68 crore for air pollution control
साल 2019 में केंद्र सरकार ने बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए देश के 133 शहरों को चुना जहां एयर पलूशन कंट्रोल करना था। ये इसलिए किया गया ताकि दिल्ली जैसे हालात बाकी किसी शहर के ना हों। इस प्रोग्राम का नाम रखा गया National Clean Air Program। इन 133 शहरों में हमारे उत्तराखंड के भी 3 शहर चुने गए। जिसमें देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर शामिल थे। इसके लिए केंद्र सरकार ने भारी भरकम बजट भी जारी किया जिसमें उत्तराखंड की झोली में भी 85.62 करोड़ रुपए आए।

National Clean Air Program के तहत उत्तराखंड को दिए गए 85.62 करोड़
अब जानने वाली बात ये है कि ये पैसे कैसे बंटे गए:-
देहरादून
- नगर निगम: ₹58.68 करोड़
- RTO: ₹1.6 करोड़
- प्रदूषण बोर्ड: ₹3.53 करोड़
- कुल: ₹63.81 करोड़
ऋषिकेश:
- नगर निगम: ₹8.18 करोड़
- ARTO: ₹0.5 करोड़
- प्रदूषण बोर्ड: ₹3.52 करोड़
- कुल: ₹12.20 करोड़
काशीपुर:
- नगर निगम: ₹8.14 करोड़
- ARTO: ₹0.46 करोड़
- प्रदूषण बोर्ड: ₹0.59 करोड़
- कुल: ₹9.19 करोड़
- कृषि विभाग को: ₹0.4 करोड़
कहां हुए करोड़ों रुपए खर्च?
अब इसके बाद जो हुआ वो ध्यान से समझने की जरूरत है। जब इस पैसे को खर्च करने की बारी आई। तो विभागों ने वो काम किए जिनका प्रदूषण कम करने से दूर-दूर तक कोई लेना देना ही नहीं था। सबसे पहले नगर निगमों के कारनामे को जान लेते है। उन्हें जो करोड़ों रुपए मिले, उससे उन्होंने सड़कों के किनारे टाइल्स लगवा दीं। उनका तर्क था कि इससे धूल नहीं उड़ेगी। इसी सोच के साथ सफाई के लिए स्वीपिंग मशीनें भी खरीदी गईं। अब अधिकारियों को कौन समझाए कि सड़क की मोटी धूल और हवा में घुले ज़हरीले कण, जिन्हें हम PM 2.5 और PM 10 कहते हैं, दो अलग-अलग चीज़ें हैं।
Pollution को रोकने के लिए रोड़ पर लगाई गई टाइल्स
सड़क की मोटी धूल या मिट्टी जो हवा में कुछ समय उड़े और जल्दी बैठ जाए। उसे coarse particles कहा जाता है। जो आमतौर पर PM 10 से बड़े होते हैं। ये PM 2.5 Pollution के मुख्य कारण नहीं माने जाते। तो कुल मिलाकर रोड़ के किनारों में टाइल्स लगाकर प्लूशन कम नहीं किया जा सकता।
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने खरीद डाली चालान काटने वाली हैंड-मशीनें
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को भी इस फंड से पैसा मिला था। इस फंड से उन्होंने चालान काटने वाली हैंड-मशीनें ख़रीदीं।मतलब, जिस पैसे से प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर लगाम लगनी थी। उस पैसे से ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर वसूली का इंतज़ाम किया गया।
कृषि विभाग को पराली प्रदूषण की रिसर्च के लिए लाखों रुपए
कृषि विभाग को पराली प्रदूषण पर रिसर्च करने के लिए 40 लाख रुपए दिए गए। कमाल की बात ये है कि उत्तराखंड में पराली जलाना कभी पंजाब-हरियाणा की तरह एक बड़ा मुद्दा रहा ही नहीं। यानी एक ऐसी समस्या पर रिसर्च, जो ज़मीन पर है ही नहीं। उसके लिए ये पैसे खपाए गए। जिस एजेंसी पर प्रदूषण रोकने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। यानी उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की, उसने तो हद पार कर दी।
पैसा कहां-कहां गया?
बोर्ड ने हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए मिले पैसे से अपने हेडक्वार्टर में पानी की गुणवत्ता जांचने की लैब बना डाली। अब आप सोच रहे होंगे कि ये पैसा कितना और कहां-कहां गया। तो ये आंकड़े देखिए:-
- देहरादून नगर निगम: 48.21 करोड़ खर्च हुए
- ऋषिकेश नगर निगम: 5.5 करोड़ खर्च हुए
- काशीपुर नगर निगम: 6.36 करोड़ खर्च हुए
बाकी विभाग मिलाकर कुल 68 करोड़ रुपये से ज़्यादा स्वाहा हो गए।
क्या हवा हुई साफ?
चलिए ये भी देख लेते हैं की क्या इन 68 करोड़ से हवा साफ़ हुई। हालांकि उससे पहले पीएम-10 और PM (particulate matter) 2.5 के मानक जान लेते हैं। PM 10 का स्तर 24 घंटे में 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
- देहरादून, (पीएम-10) 130 से अधिक और (पीएम-2.5) 68 के करीब
- ऋषिकेश, (पीएम-10) 100 के पार और (पीएम-2.5) 50 के करीब
- काशीपुर, (पीएम-10 30) से अधिक और (पीएम-2.5) 18 से अधिक
उत्तराखंड का हो सकता है दिल्ली जैसा हाल?
ये है पूरे 68 करोड़ का हिसाब किताब। ये हमारे भविष्य का भी सवाल है। अगर हम आज नहीं जागे तो हमारा भविष्य देश की राजधानी दिल्ली जैसा हो सकता हैं। अगर हम दिल्ली की बात करें तो यहां के कई इलाकों में AQI 500 से 1000 तक पहुंच गया है। ऐसा ही चलता रहा तो हमारे उत्तराखंड को अगला दिल्ली बनने में देर नहीं लगेगी। यहां भी लगातार हमारे राज्य का PM 2.5 index भी बढ़ता AQI लगातार घटता जा रहा है। उत्तराखंड में लगातार गाड़ियों की संख्या भी बढ़ रही है।
