ये तो आप में से कई लोग जानते ही होंगे कि दीपावली के दौरान उत्तराखंड में ऐपण बनाए जाते है। ये एक ऐसी रंगोली है जो घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर देती है। लेकिन उत्तराखंड की ऐपण कला के बारे में ये बात आप शायद ही जानते होंगे। ये एक ऐसी कला है जिसका सीधा कनेक्शन यूरोप और तिब्बत के तंत्र मंत्र से है। चलिए जानते है इस आर्टिकल में।
दीपावली के दौरान उत्तराखंड में बनाए जाते है ऐपण
दीपावली के आते ही देशभर में हर घर सजने लगता है। लेकिन उत्तराखंड में घर के साथ साथ देहरीयों को भी सजाने का रिवाज है। हमारी पारंपरिक लोककला ऐपण से। इन लाल सफेद रेखाओं से उत्तराखंड के कुमाउं में घर की देहलियों आंगन और मंदिर को को सजाया जाता है। ये रेखाएं गेरू के लाल रंग और चावल के सफेद घोल से बनाई जाती हैं। मान्यता है कि दहलीज आंगन और तुलसी के पास ऐपण बनाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।

तंत्र-मंत्र की शक्तियों से है ऐपण का कनेक्शन
हालांकि इस अल्पना में हर एक रेखा, हर एक बिंदु का गहरा मतलब होता है। असल में ये देवी-देवताओं को अपने घर बुलाने का एक निमंत्रण पत्र है। आपको ये जानकर हैरानी होगी की ये ऐपण कोई साधारण डिज़ाइन नहीं है। ये एक आध्यात्मिक कला है जिसका सीधा कनेक्शन तंत्र-मंत्र की शक्तियों से है।
तिब्बत में बुरी आत्माओं से छुटकारे के लिए बनाया जाता है ऐपण
दरअसल गेरू और चावल से बने ये ऐपण एक शक्तिशाली ऊर्जा कवच होते हैं। ये ऐपण घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को बाहर धकेलते हैं और सकारात्मक शक्तियों का आह्वान करते हैं। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बुरी शक्तियों को रोकने वाली ये कला सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं है। यूरोप में प्रेत-आत्माओं और बुरी नज़र से बचने के लिए ठीक ऐसे ही प्रतीक बनाए जाते हैं। जिन्हें पोंटोग्राम (Pontogram) कहते हैं। तिब्बत में बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए ज़मीन पर जो अल्पनाएं बनती हैं, उन्हें किनलोर (Kinlor) कहा जाता है।
हजारों साल पुरानी परंपरा पर मंडरा रहा खतरा
लेकिन आज इस हज़ारों साल पुरानी इस कला पर एक खतरा मंडरा रहा है। बाज़ारवाद की दौड़ में गेरू और चावल की जगह अब लाल-सफ़ेद पेंट और ब्रश ने ले ली है। अब ऐपण के बने-बनाए स्टीकर भी मिलने लगे हैं। जिन्हें लगाना भी आसान है और ये दिखने में भी सुंदर लगते हैं। उत्तराखंड हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट्स डेवलपमेंट काउंसिल ने ऐपण को GI Tag भी दिया है।
